COP 26 में भारत ने कहा था कि वो वर्ष 2070 तक ग्रीन हाउस गैंसों के उत्सर्जन पर पूरी तरह रोक लगा लेगा और नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल कर लेगा। ग्रीन हाउस गैसों के लिए परिवहन क्षेत्र 14 प्रतिशत तक ज़िम्मेदार है। अगर इसपर काबू पाना है तो परिवहन क्षेत्र से ही इसकी शुरुआत करनी पड़ेगी। आईसीसीटी के एक आर्टिकल के मुताबिक़, भारत में 28 लाख से ज़्यादा ट्रक हैं और ये हर साल 100 बिलियन किलोमीटर की यात्रा करते हैं। भारतीय सड़कों पर ट्रकों की हिस्सेदारी मात्र 2 प्रतिशत है। लेकिन ये उत्सर्जन और ईंधन की ख़पत के मामले में 40 प्रतिशत तक ज़िम्मेदार हैं। भारत को इलेक्ट्रिक ट्रकों की संख्या कुल 79 प्रतिशत तक करनी होगी तब जाकर वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि क्या ये महज़ एक सपने जैसा है? क्या इलेक्ट्रिक ट्रक्स डीज़ल ट्रक्स को चुनौती दे पाएंगे? अगर हां तो भारत जैसे विकासशील देश में ये कैसे संभव है!
डीज़ल ट्रक के बारे में
. पहले बात डीज़ल ट्रक की करते हैं। ये ट्रक जानदार होते हैं। इनमें अच्छी पावर और बढ़िया टॉर्क मिलता है। इनका इंजन इलेक्ट्रिक ट्रक की तुलना में मज़बूत होता है। डीज़ल, ईंधन का काम तो करता ही है बल्कि लुब्रिकेंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जो इंजन को वियर और टियर से बचाता है।
. ड्राइविंग रेंज- इन ट्रकों की ड्राइविंग रेंज इलेक्ट्रिक ट्रक्स की तुलना में कहीं ज़्यादा होती है। आप डीज़ल और इलेक्ट्रक ट्रक को आमने सामने रख दें। डीज़ल की टंकी फुल करवा लें व इलेक्ट्रिक ट्रक को पूरा चार्ज कर लें। डीज़ल ट्रक इन इलेक्ट्रिक ट्रक की तुलना में लगभग दोगुनी ड्राइविंग रेंज दे सकता है।
. इलेक्ट्रिक ट्रकों को चार्ज होने में घंटों लग जाते हैं जबकि कुछ ही मिनटों में इन ट्रकों में ईंधन भरवाकर आप अपने सफ़र पर निकल सकते हैं।
. आजकल भारत में ईवी गाड़ियां आम हैं। लेकिन ट्रकों के बारे में ये कहना गलत होगा। इतने भारी व बड़े वाहनों को कुछ ही देर में चार्ज कर देना जिससे वो तुरंत वापस अपनी मंज़िल पर चलने को तैयार हो जाएं, ये तो अभी दूर ही दिखता है।
. डीज़ल ट्रकों की लोडिंग क्षमता भी इलेक्ट्रिक ट्रकों की तुलना में ज़्यादा होती है।
बहुत से लोग अक्सर सोचते हैं कि डीज़ल वाले ट्रक ही क्यों इस्तेमाल किए जाते है? पेट्रोल क्यों नहीं? इसका सबसे बड़ा कारण है बेहतर लो एंड टॉर्क। इसका मतलब ये है कि कम स्पीड पर भारी माल आराम से खींचा जा सकता है।
इलेक्ट्रिक ट्रक के बारे में
. हालांकि ये ट्रक डीज़ल ट्रक की तुलना में महंगे होते हैं लेकिन इनके रखरखाव पर आपको बहुत कम पैसे खर्च करने पड़ेंगे।
. पर्यावरण के लिए भी ये ट्रक बहुत अच्छे होते हैं। दिल्ली जैसा शहर जो हर साल सर्दियों में गैस चेंबर बन जाता है, इन जैसे इलाकों के लिए ये ट्रक वरदान हैं।
. छोटी दूरी के लिए ऐसे ट्रक बेहतरीन होते हैं। कम शोर और शून्य प्रदूषण के साथ इन ट्रकों पर भरोसा किया जा सकता है। हालांकि चुनौती ये है कि हर जगह चार्जिंग स्टेशन मौजूद नहीं है। ख़ासतौर पर ग्रामीण इलाकों में।
भारत ही नहीं दुनिया भी इलेक्ट्रिकरण की ओर बढ़ चली है। ऑस्ट्रिया ने ऐलान किया है कि वर्ष 2030 से 18 टन से नीचे जितने भी भारी वाहन हैं, उनका नेट उत्सर्जन शून्य प्रतिशत होना चाहिए। इससे ज़्यादा बड़े वाहनों के लिए समयसीमा वर्ष 2035 रखी गई है। अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया ने भी वर्ष 2045 तक शून्य उत्सर्जन करने का लक्ष्य रखा है। आईसीसीटी की स्टडी के मुताबिक़, वर्ष 2050 तक भारत में ट्रक हर साल 400 बिलियन किलोमीटर का सफ़र तय करेंगे। बेहतर हाईवे व्यवस्था भी इसका एक कारण होगी। इसलिए अगर ग्रीन हाउस गैसों के नेट उत्सर्जन को शून्य करना है तो अभी से ध्यान देना होगा। फैसला अब आप पर है!